Mohini Ekadashi 2021: कब है मोहिनी एकादशी? जानिए कब से शुरू करना चाहिए एकादशी व्रत

 


मोहिनी एकादशी का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। एकादशी व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और दांपत्य जीवन सुखद होता है। जीवन में आने वाली समस्याओं को भी मोहिनी एकादशी व्रत में लाभकारी माना जाता है। जिससे मन और शरीर दोनों ही संतुलित रहते हैं. खासतौर से गंभीर रोगों से रक्षा होती है और खूब सारा नाम यश मिलता है।


इस एकादशी के उपवास से मोह के बंधन नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। भावनाओं और मोह से मुक्ति की इच्छा रखने वालों के लिए भी वैशाख मास की एकादशी का विशेष महत्व है। मोहिनी एकादशी के दिन श्री हरि के राम स्वरूप की आराधना की जाती है। इस बार मोहिनी एकादशी 22 मई को है। 


मोहिनी एकादशी पर वरदान

व्यक्ति की चिंताएं और मोह माया का प्रभाव कम होता है। ईश्वर की कृपा का अनुभव होने लगता है। पाप प्रभाव कम होता है और मन शुद्ध होता है। व्यक्ति हर तरह की दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहता है। व्यक्ति को गौदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। 


मोहिनी एकादशी शुभ मुहूर्त


एकादशी तिथि प्रारम्भ : 22 मई 2021 को सुबह 09:15 बजे से

एकादशी तिथि समाप्त : 23 मई 2021 को सुबह 06:42 बजे तक

पारणा मुहूर्त : 24 मई सुबह 05:26 बजे से सुबह 08:10 बजे तक।


पूजन विधि

एकादशी व्रत के मुख्य देवता भगवान विष्णु या उनके अवतार होते हैं, जिनकी पूजा इस दिन की जाती है। इस दिन प्रातः उठकर स्नान करने के बाद पहले सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान राम की आराधना करें। उनको पीले फूल,पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। फल भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद भगवान राम का ध्यान करें तथा उनके मन्त्रों का जप करें।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने देवी-देवताओं को अमृत पान कराने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। लोगों में आस्था है कि इस व्रत को रखने और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।


एकादशी व्रत में दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए। एकादशी के दिन न ही चने और न ही चने के आटे से बनी चीजें खानी चाहिए। शहद खाने से भी बचना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा में धूप, फल, फूल, दीप, पंचामृत आदि का प्रयोग करें। इस व्रत में द्वेष भावना या क्रोध को मन में न लाएं। परनिंदा से बचें। इस व्रत में अन्न वर्जित है।


इस पोस्ट में दी गयी  जानकारी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दी गयी है। जिसकी हम पुष्टि नहीं करते। 


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