मौन साधना क्या है ? मौन साधना से मिलने वाले लाभ | Benefits of Silence Retreat



मौन साधना क्या है ?


मौन का अर्थ है मन की शांत अवस्था। वह नीरव-निस्तब्धता, जहां मन बिल्कुल भी विचलित न हो। यदि हम सिर्फ बोलना छोड़ दें, तो वह मौन नहीं कहलाएगा। क्योंकि मौन सिर्फ वाणी का नहीं होता, वह पूर्णत: मन का होता है। चूंकि मन का स्वभाव चंचल होता है, इसलिए मौन उसे नियंत्रित करने की महासाधना है।

अक्सर ऐसा होता है कि लोग किसी से नाराज होकर उससे बात करना बंद कर देते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जमाने से नाराज होकर बोलना छोड़ देते हैं। यह मौन नहीं है। क्योंकि ऐसी स्थितियों में हमारा मन आहत होकर अधिक विचलित हो जाता है। मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि मौन के द्वारा चित्त की चंचलता को शांत करके शरीर की ऊर्जा और एकाग्रता को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन ऊपर दी गई अवस्थाओं में चुप रहना खतरनाक है। मनोचिकित्सक डॉ.नरेश पुरोहित ने एक शोध में बताया है कि जब हम चुप रहने का प्रयास करते हैं और दूसरों को अपनी बात इशारे से नहीं समझा पाते, तब हमारा मन और भी विचलित होने लगता है। इससे रक्तचाप बढ़ जाता है। जब हम मौन को विरोध के रूप में लेते हैं यानी किसी से नाराज होकर बातचीत बंद कर देते हैं, तब भी हमारा मन विचलित होता है और शरीर के लिए नुकसानदायक होता है।

श्रीमद्भागवत गीता भी कहती है कि मौन वाणी से अधिक मन का होना चाहिए। गीता के 16-17वें अध्याय में कहा गया है, 'मन की चंचलता को नियंत्रित करने वाले मौन की स्थिति में मनुष्य सीधे परमात्मा से संवाद कर सकता है। इसी प्रकार चाणक्य नीति में बताया गया है कि मौन आत्मशक्ति एवं आत्मविश्वास को बढ़ाता है, लेकिन मन में उपजी भावनाओं को व्यक्त न करने से धमनियों पर अधिक दबाव पड़ता है।

महादेव को करें प्रसन्न, पढ़ें शिव तांडव


इसका अर्थ यह है कि सिर्फ वाणी को शांत कर लेना मौन नहींहोता। अगर ऐसा होता तो हर मूक व्यक्ति आजीवन मौन साधक होता। अधिकांश शास्त्रों में मौन व्रत का माहात्म्य तो बताया गया है, लेकिन वे स्थितियां नहीं बताई गई हैं, जिनसे मौन संभव हो सकता है। मन की चंचलता को ही नियंत्रित करना मौन है, जो हमारे आम जीवन में बहुत लाभकारी है।

मन के स्थिर होते ही मौन सक्रिय हो जाता है। मौन से मानसिक ऊर्जा का क्षरण रुकता है। मौन में मन शांत, सहज व उर्वर होता है और बाद में सृजनशील विचारों की उत्पत्ति करने लगता है। कहा जाता है कि मन को जीतने वाला पूरी दुनिया को जीत लेता है। इसीलिए मौन से आंतरिक जगत के साथ-साथ बाहरी दुनिया को भी लाभ मिलता है। जापान के बौद्धमठ के चिन्ह यान ने एक अध्ययन में यह साबित किया है कि कामकाजी या लौकिक जीवन में मौन से सकारात्मक सोच का विकास होता है।

मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥ (भगवद गीता १७- १६)
सुखद स्वभाव, सम मनोदशा, आत्म विचार और निदिध्यासन, एक शांत मन एवं भाव की शुद्धता मन की तपस्या होती है।

माँ सरस्वती मंत्र


मनुष्य का मन सदैव बात करता रहता है। यदि आप बात कर रहे हों तो आपके मन की बात को सुनना संभव नहीं है। यदि आप अपने मन की बातों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो उस को शांत करना असंभव है। और, अपने मन की सुनने के लिए आप का मौन होना आवश्यक है। मन की पूर्ण शांति प्राप्त करने के लिए निस्तब्धता सर्वोपरि है।



पहले आप को छोटी सी अवधि से मौन का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम एक साथ चौबीस घंटों के लिए मौन रहना चाहिए। आप केवल बोलती बन्द करके मौन रहें तो इस अभ्यास की केवल पचास प्रतिशत पूर्ती होगी। मौन अभ्यास का अर्थ है पूरी तरह से निस्तब्धता। अर्थात किसी भी प्रकार का वार्तालाप नहीं करना चाहिए।

मौन के समय, शुरू में आप अपने साथ एक पुस्तक ले जा सकते हैं। परंतु आदर्शतः आप को मौन की पूर्ण अवधि एक कमरे में केवल स्वयं की संगत में ही बितानी चाहिए। परंतु यदि आप चौबीस घंटों में अठारह घंटे सोने में बिता दें क्योंकि आप के पास करने के लिए और कुछ नहीं है तब आप मौन के अभ्यास में अपना समय नष्ट ना करें। यह अभ्यास मौन का है, निद्रा का नहीं। आप जितना अधिक सचेत और सतर्क रहें आप का अभ्यास उतना ही बेहतर होगा। जब आप पूर्ण रूप से मौन का पालन करें, आप को अपने मन के बेचैन एवं अशांत स्वभाव का अहसास होना शुरू होगा। आप को पता चलेगा कि मन उस बेचैन लंगूर की तरह है जो अधिक समय तक किसी भी शाखा पर नहीं टिक पाता।

शुरू में, मौन के समय आप के ध्यान करने की क्षमता कम हो जाएगी। साथ ही संभवत: आप एक बेचैनी का अनुभव भी करेंगे। परंतु आप चिंतित ना हों – यह स्वाभाविक है। संयम के साथ निरन्तर प्रयत्न करते रहें फिर धीरे धीरे शांति का अनुभव करेंगे। इस प्रकार आप उत्कृष्टता से ध्यान करने के लिए तैयार हो जाएंगे। मौन अभ्यास एक उपजाऊ भूमी तैयार करने के समान है जिस पर आप ध्यान के बीज बो सकते हैं।

मौन के अभ्यास में किसी भी प्रकार का लिखित, मौखिक अथवा इशारों द्वारा संवाद नहीं किया जाता। मौन केवल भाषण का ही नियंत्रण नहीं, इस में अपने कार्यों, भाषण और विचारों को भी शांत किया जाता है। एक सगुन उपासक जो ईश्वर को किसी देवी या देवता के रूप में पूजता है, वह मौन के समय अपने इष्ट की स्तुति कर सकता है। उसके लिए मौन का उद्देश्य मात्र मन की शांति नहीं। मौन द्वारा वह अपने इष्ट देवता के प्रति अपनी भक्ति को सुदृढ़ बनाता है।

SIDDHESHWAR - The Power of Soul

मौन साधना से मिलने वाले लाभ | Benefits of Silence Retreat 


1. अक्रियाशीलता को बाइपास करें

2. बढ़ती है संवेदनशीलता

3. भविष्य की समस्याओं का समाधान

4. बढ़ती है याददाश्त

Ganpati Gayatri mantra


5. एक्शन को मिलती है मजबूती

6. जागरूकता बढ़ती है

7. दिगाम भी तेज होता है

8. दिमाग भी तेज होता है

9.  यदि सीमित और संयमित ढंग से वाणी का प्रयोग किया जाए तो यह व्यक्ति निरर्थक संघर्षों से बच जाता है

10. मौन शक्तिसंचय का एक अनूठा तरीका है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से संपन्न बनाती है। मौन केवल आंतरिक दृष्टि से ही व्यक्ति को शक्ति संपन्न नहीं बनाता बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी यह शक्ति के अपव्यव को रोकता है।

11. इसके कारण उसकी ऊर्जा यूं ही जाया हो जाती है। यदि सीमित और संयमित ढंग से वाणी का प्रयोग किया जाए तो यह व्यक्ति निरर्थक संघर्षों से बच जाता है।

12. मौन ऐसा उपाय है जिससे आंतरिक जगत के साथ बाहरी दुनिया में भी मदद मिलती है। इस उपाय से मन की चंचलता को नष्ट किया जा सकता है और जो भरपूर जिंदगी जीना चाहते हैं वह मौन से मन की शक्ति बढ़ा सकते हैं।

13. योग साधना में तो मौन का वैसे ही बहुत महत्त्व है। कामकाजी या लौकिक जीवन में मौन से सकारात्मक सोच का विकास होता है। मौन से आंतरिक या मानसिक शक्ति मिलती है।

14. ध्यान योग और मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

15. बौद्ध धर्म में अनापानसति नामक बौद्ध साधना का उल्लेख मिलता है। उसके अनुसार काम करते समय ज्यादा से ज्यादा चुप रहने का अभ्यास करना चाहिए।

16. काम करते हुए बीच-बीच में सांसों के आने- जाने पर ही ध्यान केंद्रित करना और जो भी दिखाई या सुनाई दे रहा है उसे बिना किसी प्रतिक्रिया के देखते रहने के लिए कहा जाता है। इस तरह काम के दौरान मौन के अभ्यास से मन को शांति और शक्ति मिलती है।

Mahadev Status | महादेव स्टेटस


17. इसके अतिरिक्त व्यक्ति लंबे समय तक ज्यादा सहज, सजग और तनाव रहित बना रहता है। इसके कारण कामकाज में होने वाली गलतियों को संभावना बहुत कम हो जाती है।

18. वाणी को शांत करने से पहले मन को शांत करना होगा। यही सही अर्थो में मौन है, जो रोजमर्रा के कामों में हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है।



श्री सिद्धेश्वर तीर्थ तिरुपति द्वारा मौन साधना का अभ्यास करने का कार्यकर्म नियमित रूप से चलाया जा रहा है।

श्री सिद्धेश्वर - आत्मा की शक्ति 

No comments:

Post a Comment

Featured Post

Guru Purnima 2021: कब है गुरु पूर्णिमा? जानें शुभ मुहूर्त और क्या है धार्मिक महत्व

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा,  गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः। गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं और गुर...

Popular Posts