एसिडिटी और हाइपर एसिडिटी के लिए जादुई नुस्खा।

राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था (अहमदाबाद)
एसिडिटी और हाइपर एसिडिटी के लिए जादुई नुस्खा।

क्या आप जानते हैं, एसिडिटी की दवा से हो सकती हैं आपकी किडनी खराब। जब हम खाना खाते हैं तो इस को पचाने के लिए शरीर में एसिड बनता हैं। जिस की मदद से ये भोजन आसानी से पांच जाता हैं। ये ज़रूरी भी हैं। मगर कभी कभी ये एसिड इतना ज़्यादा मात्रा में बनता हैं के इसकी वजह से सर दर्द, सीने में जलन और पेट में अलसर और अलसर के बाद कैंसर तक होने की सम्भावना हो जाती हैं। ऐसे में हम नियमित ही घर में इनो या पीपीआई (प्रोटॉन पंप इनहिबिटर्स) दवा का सेवन करते रहते हैं। मगर आपको जान कर आश्चर्य होगा के ये दवाये सेहत के लिए बहुत खतरनाक हैं। पीपीआई ब्लड में मैग्नीशियम की कमी कर देता है। अगर खून पर असर पड़ रहा है तो किडनी पर असर पड़ना लाज़मी है। जिसका सीधा सा अर्थ की ये दवाये हमारी सेहत के लिए खतरनाक हैं। हमने कई ऐसे मूर्ख लोग भी देखे हैं जो एसिडिटी होने पर कोल्ड ड्रिंक पेप्सी या कोका कोला पीते हैं ये सोच कर के इस से एसिडिटी कंट्रोल होगा। ऐसे लोगो को भगवान ही बचा सकता हैं। तो ऐसी स्थिति में कैसे करे इस एसिडिटी का इलाज। आज हम आपको बता रहे हैं भयंकर से भयंकर एसिडिटी का चुटकी बजाते आसान सा इलाज। ये इलाज आपकी सोच से कई गुना ज़्यादा कारगार हैं। तो क्या हैं ये उपचार। ये हर रसोई की शान हैं। हर नमकीन पकवान इसके बिना अधूरा हैं। 

ये हैं आपकी रसोई में मौजूद जीरा। जी हाँ जीरा। 

कैसे करे सेवन। 

जब भी आपको एसिडिटी हो जाए कितने भी भयंकर से भयंकर एसिडिटी हो आपको बस जीरा कच्चा ही चबा चबा कर खाना हैं। एसिडिटी के हिसाब से आधे से एक चम्मच (ढाई से पांच ग्राम) जीरा खाए। इसके 10 मिनट बाद गुनगुना पानी पी ले। आप देखेंगे के आपकी समस्या ऐसे गायब हो गयी जैसे गधे के सर से सींग।

ये उपरोक्त नुस्खा मैंने बहुत लोगो पर आजमाया हैं। और उनका अनुभव ऐसा हैं के जैसे जादू। तो आप भी ये आजमाए -" स्वदेशी रक्षक "-"अमर आत्मा भाई श्री राजीव दीक्षित जी " को कोटि कोटि वंदन। 🙏 




यहाँ पोस्ट की गयी सभी जानकारी इंटरनेट और धर्म ग्रंथो की किताबो से ली गयी है। सभी मंत्र या उपचार आपके विश्वास और इच्छा सकती पर कार्य करते है कुछ मंत्र या उपचार गलती करने पर विपरीत प्रभाव भी दे सकते है।  हम किसी भी प्रकार की प्रभाव व विपरीत प्रभाव के लिए जिम्मेदार नहीं है कोई भी साधना प्रशिक्षित गुरु के निर्देश पर ही करे.  

शिव बिल्वाश्टकम - Shiv BilvAshtakam | पढ़ने से महादेव होंगे प्रसन्न

ॐ नमः शिवाय भगवन शिव की पूजा में बिल्वपत्र चढाने का विधान है परंतु बिल्वपत्र को ऐसे ही शिवजी के सामने रख देना ही पर्याप्त नहीं है बिल्वपत्रों को चढ़ते समय बिलाष्टकं जाप किया जाता है त्रिदळं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुश्हम.ह . त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम.ह ..|1| त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च ह्यच्च्हिद्रैः कोमलैःशुभैः . शिवपूजां करिश्ह्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह .. |2| अखण्ड बिल्व पत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे . साळग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत.ह ..|3| शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह .. सोमयञ महापुण्यं ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह ..|4| दन्तिकोटि सहस्राणि वाजपेये शतानि च . कोटिकन्या महादानं ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह ..|5| लश्म्यास्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम.ह . बिल्ववृशं प्रयच्च्हामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह ..|6| मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विश्ह्णुरूपिणे . दर्शनं बिल्ववृशस्य स्पर्शनं पापनाशनम.ह ..|7| अघोरपापसंहारं ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह .. काशीक्शेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम.ह ..|8| प्रयागमाधवं दृश्ह्ट्वा ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह .. सर्वपाप विनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात.ह ..|9| अग्रतः शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम.ह .. बिल्वाश्ह्टकमिदं पुण्यं यः पठेत.ह शिवसन्निधौ ..|10|

श्रीरुद्राष्टकम् (Rudrashtakam)

श्रीरुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् । स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥ चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥ प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् । त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥ न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् । न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥ रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये । ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥ ॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

माँ सरस्वती मंत्र - Saraswati Vandana

माँ सरस्वती विद्या, संगीत, कला और विज्ञान की देवी है, यह त्रिशक्ति(माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती) का ही एक भाग है यह याद्दाश्त और मानसिक शक्ति भी प्रदान करती है । माँ सरस्वती की ही कृपा से हम वेद, पुराण, उपनिषद, ग्रंथ, महाकाव्य, देव गाथा, भागवत कथाएं, नॄत्य, संगीत, युद्ध ज्ञान, शास्त्र, शस्त्र ज्ञान, अस्त्र ज्ञान, और ब्रह्माण्ड की समस्त कलाएँ सीख सकते है,

यह माँ सरस्वती का मंत्र एक दुर्लभ और गोपनीय मंत्र गुरुदेव श्री नारायण दत्त श्रीमाली द्वारा दिया गया है यह मंत्र हमारे ज्ञान और हमारे कौशल को विकसित करता है इस मंत्र की एक माला जाप साधारण उद्देश्य के लिए और किसी विशेष उद्देश्य के लिए ५ माला २१ दिनों तक जाप करे जाप में स्वछता की विशेष ध्यान रखे ||


मंत्र भाषा - संस्कृत 

"ॐ ऐं श्रीं ह्रीं पूर्ण वाक् सिद्धिम् दिव्यं आगच्छ ह्रीं श्रीं ऐं ॐ नमः "

Mantra In English


"Ohm Aing Shreeng Hreeng Purna Vak Siddhim 
Divyam Aagch Hreeng Shreeng Aing Om Namah: "

मंत्र भाषा - देवनागरी 
"ओह्म  ऐंग श्रींग ह्रींग पूर्ण वाक् सिद्धिम् दिव्यम आगच्छ ह्रींग श्रींग ऐंग ओह्म नमह"

सुचना : सभी लोग संस्कृत और इंग्लिश पढ़ने में असमर्थ है और सही उच्चारण न होने के कारण ही मंत्रो का प्रभाव पूर्ण रूप से नहीं हो पाता इसलिए हमने देवनागरी भाषा में मंत्रो को लिखना प्रारम्भ किआ है हम जल्दी भी पिछले सभी पोस्ट को भी देवनागरी भाषा में लिखकर आपके सामने प्रस्तुत करेंगे। 

हमसे कोई त्रुटि हो या कोई कमी रह गयी तो क्षमा करे और अपने अमूल्य सुझाव हमें मेसेज में भेजे. 

ॐ अर्हम  

Shiv Tandav Stotra in Sanskrit - shiv tandav stotram lyrics| Mahadev

||शिवताण्डवस्तोत्रम् ||

shiv tandan stotram

||श्रीगणेशाय नमः ||

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||

माँ सरस्वती मंत्र


लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||

धन कमाने के सरल मंत्र, पैसा बरसेगा आसमान से


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||

Hanumat Zanzira


पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||

इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्




सिद्ध वशीकरण साधना

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