शीतलाष्टकं - शीतला सप्तमी स्त्रोत -- MantraGyaan


आप सभी को शीतलाष्टमी की हार्दिक मंगलकामनाएं सभी की काया निरोगी रहे ।

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। 

शीतला माता एक प्रमुख हिन्दू देवी के रूप में पूजी जाती है। अनेक धर्म ग्रंथों में शीतला देवी के संदर्भ में वर्णित है, स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग कि देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं। तो आज आप भी मां की पूजा अर्चना करे।  शीतला माता के संग ज्वरासुर-ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण-त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है। स्कंद पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। आओ हम सब इस वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण को दूर भगाने के लिए मां शीतला की अर्चना करे।


ईश्वर उवाच:-

वन्देSहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां    शूर्पालंकृतमस्तकाम्।।1।।


अर्थ – ईश्वर बोले – गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ।


वन्देSहं  शीतलां  देवीं  सर्वरोगभयापहाम्।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।2।।


अर्थ – मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक अर्थात चेचक का बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है.


शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्याहपीडित:।

विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।3।।


अर्थ – चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” – ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।


यस्त्वामुदकमध्ये तु  धृत्वा पूजयते नर:।

विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।।4।।


अर्थ – जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है।


शीतले  ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।

प्रणष्टचक्षुष:   पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।।5।।


अर्थ – हे शीतले! ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त तथा विनष्ट नेत्र ज्योति वाले मनुष्य के लिए आपको ही जीवनरूपी औषधि कहा गया है।


शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हसरि दुस्त्यजान्।

विस्फोटककविदीर्णानां   त्वमेकामृतवर्षिणी।।6।।


अर्थ – हे शीतले! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं, एकमात्र आप ही विस्फोटक – रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं।


श्रीरामरक्षास्तोत्रम्


गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।

त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।7।।


अर्थ – हे शीतले! मनुष्यों के गलगण्ड ग्रह आदि तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं, वे आपके ध्यान मात्र से नष्ट हो जाते हैं।


न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।

त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।।8।।


अर्थ – उस उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना मन्त्र ही है. हे शीतले! एकमात्र आप जननी को छोड़कर (उस रोग से मुक्ति पाने के लिए) मुझे कोई दूसरा देवता नहीं दिखाई देता।


मृणालतन्तुसदृशीं   नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।

यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।9।।


अर्थ – हे देवि! जो प्राणी मृणाल – तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती।


अष्टकं शीतलादेव्या यो नर: प्रपठेत्सदा।

विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।।10।।


अर्थ – जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता।


श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितै:।

उपसर्गविनाशाय  परं  स्वस्त्ययनं  महत्।।11।।


अर्थ – मनुष्यों को विघ्न-बाधाओं के विनाश के लिये श्रद्धा तथा भक्ति से युक्त होकर इस परम कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए अथवा श्रवण (सुनना) करना चाहिए ।


शिवताण्डवस्तोत्रम्


शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले  त्वं  जगद्धात्री  शीतलायै  नमो नम:।।12।।


अर्थ – हे शीतले! आप जगत की माता हैं, हे शीतले! आप जगत के पिता हैं, हे शीतले! आप जगत का पालन करने वाली हैं, आप शीतला को बार-बार नमस्कार हैं ।


रासभो   गर्दभश्चैव   खरो    वैशाखनन्दन:।

शीतलावाहनश्चैव       दूर्वाकन्दनिकृन्तन:।।13।।


एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु य: पठेत्।

तस्य गेहे शिशुनां च शीतलारुड़् न जायते।।14।।


13 व 14 का अर्थ – जो व्यक्ति रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द – निकृन्तन – भगवती शीतला के वाहन के इन नामों का उनके समक्ष पाठ करता है, उसके घर में शीतला रोग नहीं होता है।


शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।

दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।15।।


अर्थ – इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए।

।।इति श्रीस्कन्दमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम् ।।


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